मूल निवास, सशक्त भू कानून की मांग को लेकर भूख हड़ताल

पुलिस ने मोहित डिमरी को शहीद स्मारक जाने से रोका
पुलिस ने शहीद स्मारक के मुख्य गेट पर जड़ा ताला
बाहर ही भूख हड़ताल पर बैठे भू कानून समन्वय संघर्ष समिति संयोजक मोहित डिमरी
देहरादून। मूल निवास और सशक्त भू कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर मंगलवार से मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी शहीद स्मारक पर आमरण अनशन पर बैठने वाले थे। पुलिस ने मोहित डिमरी को शहीद स्मारक में अनशन करने से रोक दिया। मुख्य गेट पर ताला लगा दिया।
पुलिस ने शहीद स्मारक के मुख्य गेट पर ताला लगाने के बाद मोहित डिमरी और संघर्ष समिति से जुड़े लोगों ने शहीद स्मारक के मुख्य द्वार के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी है। संघर्ष समिति ने आज से अपनी मांगों को लेकर शहीद स्मारक पर भूख हड़ताल का ऐलान किया था। मोहित डिमरी का कहना है कि सरकार को भूमि कानून में हुए संशोधनों को तत्काल रद्द करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष समिति से जुड़े लोग आज शहीद स्मारक पर आमरण अनशन पर बैठने जा रहे थे। लेकिन शहीद स्मारक के गेट पर ताला जड़ दिया गया है।
मोहित डिमरी ने कहा कि प्रदेश में मूल निवास और भू कानून की मांग उठा रहे लोगों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने भू कानून में इतने बड़े छेद कर दिए हैं कि इस प्रदेश में बड़े-बड़े भू माफिया हावी हो गए हैं। राज्य में कृषि भूमि समाप्त होती जा रही है। यहां के काश्तकार भूमिहीन होते जा रहे हैं। राज्य के मूल निवासियों को नौकरियां और रोजगार नहीं मिल पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष अपनी अस्मिता और पहचान को बचाने का है। इस संघर्ष में उत्तराखंड के तमाम लोग अपना समर्थन दे रहे हैं।

निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा सार्वजनिक करने की उठाई मांग
देहरादून। मोहित डिमरी ने भू-कानून में संशोधन रद्द करने, निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा सार्वजनिक करने और मूल निवासियों के अधिकार सुनिश्चित करने की मांगें राज्य के भविष्य और स्थायी विकास के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार मजबूत भू-कानून को लेकर गंभीर नहीं है। सरकार बजट सत्र में भू-कानून लाने की बात कर रही है, लेकिन किस तरह का भू-कानून सरकार लाएगी, स्थिति स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि 2018 के बाद भूमि कानूनों में हुए सभी संशोधनों को अध्यादेश के जरिये रद्द किया जाय।
भूमि कानून की धारा-2 को हटाया जाए। इस धारा की वजह से नगरीय क्षेत्रों में गांवों के शामिल होने से कृषि भूमि खत्म हो रही है। 400 से अधिक गांव नगरीय क्षेत्र में शामिल हुए हैं और 50 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि को खुर्द-बुर्द करने का रास्ता खोल दिया गया। साथ ही भूमि कानून के बिल को विधानसभा में पारित करने से पूर्व इसके ड्राफ्ट को जन समीक्षा के लिए सार्वजनिक किया जाए। निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा और इससे मिले रोजगार को सार्वजनिक किया जाय। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीदी है, उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाय। समिति ने कहा कि मूल निवासियों को चिह्नित किया जाए। 90 प्रतिशत नौकरियों और सरकारी योजनाओं में मूल निवासियों की भागीदारी होनी चाहिए। यह आंदोलन न केवल भूमि कानूनों के मुद्दे को उठाता है, बल्कि मूल निवासियों के अस्तित्व, रोजगार, और संसाधनों पर भी गहरी चिंता व्यक्त करता है। यह देखना होगा कि राज्य सरकार इस पर क्या कदम उठाती है। बातचीत और समाधान की दिशा में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

भूख हड़ताल को समर्थन देने पौड़ी से पहुंचे लोग
देहरादून। इधर मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति को अपना समर्थन देने पौड़ी जनपद से पहुंचे रिटायर सैनिक सुरेश पयाल दूल्हे के गेटअप में नजर आए। उन्होंने राज्य में मूल निवास और भू कानून लागू किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और परंपराओं का संरक्षण तभी संभव हो पाएगा, जब राज्य में सशक्त भू कानून लागू होगा। पयाल का कहना है कि 50 साल पुराना उत्तराखंड अब नहीं रहा। अगर प्रदेशवासियों को पहले जैसा उत्तराखंड चाहिए, तो सबको मिलकर उत्तराखंड में मजबूत भू कानून लागू किए जाने की मांग उठानी चाहिए।

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