शंकाराचार्य निकले चारधाम शीतकालीन यात्रा पर
उत्तरकाशी। उत्तराखंड और यूपी में इन दिनों मस्जिदों का मुद्दा छाया हुआ है। इन तमाम विवादों के बीच शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज का बयान आया है। उन्होंने कहा कि इन विवादों से हिंदू और मुस्लिम दोनों को दुःख होता है। दुःख के इस कारण को लड़ाई-झगड़ा करके नहीं, बल्कि साथ बैठकर शांति से हल निकालना चाहिए।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा कि जिसके पास जो प्रमाण हो, उसे मिल बैठकर देखकर जहां जैसी परिस्थिति प्रमाणिक रूप से निकले, वहां वैसा स्वरूप बनाया जाना चाहिए। उत्तरकाशी समेत देशभर में सामने आ रहे तमाम मस्जिद विवाद पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने खुलकर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि मस्जिदों के बारे में जब ये चर्चा होती है कि यह हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर उनके ऊपर बना दी गई हैं, तो इससे हिंदुओं में दुःख और आक्रोश उत्पन्न होता है। वहीं मुसलमानों को भी पीड़ा होती है कि कहीं उनके पूर्वज सही में अत्याचारी तो नहीं थे। उनके मन में यह भी आता है कि क्या उनके पूर्वज अच्छे थे या फिर उनके बारे में झूठ फैलाया जा रहा है। इसलिए ऐसे मामले को लड़ाई झगड़े से अच्छा है कि प्रमाणिकता के साथ मिल बैठकर देखें।
बता दें कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज इन दिनों उत्तराखंड की चारधाम शीतकालीन यात्रा पर हैं। गुरुवार को अपनी शीतकालीन यात्रा पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज उत्तरकाशी पहुंचे थे, जहां उन्होंने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए। काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज बाबा केदार के शीतकालीन गद्दी स्थल ऊखीमठ के लिए रवाना हुआ। इससे पहले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने दो दिन मां यमुना के शीतकालीन गद्दी स्थल खरसाली और मां गंगा शीतकालीन गद्दी स्थल मुखबा में पहुंचकर पूजा-अर्चना की थी।
शीतकालीन चारधाम यात्रा को लेकर भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि शीतकालीन चारधाम यात्रा आध्यात्मिक आनंद है। इस यात्रा में उन्हें जितना आनंद आ रहा है, वह अवर्णणीय है। उन्होंने हर सनातनी से घरों से निकलकर शीतकाल में चारधामों की यात्रा करने की बात कही।
इस अवसर उन्होंने कहा कि जैसे आदि गुरु शंकराचार्य महाराज ने चारधामों का जीर्णाेद्धार किया। उसी तरह वह चारधामों के शीतकालीन गद्दीस्थलों का जीर्णाेद्धार करना चाहते हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत मुखबा स्थित गंगा मंदिर से करने की बात कही। इस दौरान उन्होंने तीर्थ-पुरोहितों की मांग पर मुखबा स्थित गंगा मंदिर के निकट धर्मशाला निर्माण में भी सहयोग का आश्वासन दिया। गंगा का महत्व बताते हुए कहा कि कोई गंगा के पास पहुंचकर उसके जल का आचमन कर ले या उसमें उतरकर डुबकी लगा ले तो उसकी 100 पीढ़ी तर जाती हैं।