बड़ा अजीब टाइम चल रहा है. जिन फिल्मों को ओटीटी तो छोड़िए यूट्यूब पर भी रिलीज नहीं होना चाहिए था, वो थिएटर में आ रही हैं. वो बात और है कि उनके शो भी कैंसिल हो रहे हैं और जो फिल्म थिएटर में आनी चाहिए थी. वो आनन फानन में ओटीटी पर आई है. ऐसी ही एक फिल्म – पिप्पा, जो एक शानदार फिल्म है, बिना किसी भयंकर प्रमोशन के तत्परता से अमेजन प्राइम पर रिलीज हो गई है और इसमें एक अद्भुत कहानी है जो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर धूम मचा सकती है।
यह कहानी ‘पिप्पा’ की है, जो भारत का पहला टैंक था जो पानी पर चल सकता था और इस ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन को पराजित कर दिया था। इस फिल्म को उस टैंक के नाम पर रखना बेहद दिलचस्प है। ईशान खट्टर, मृणाल ठाकुर और प्रियांशु पेन्यूली इसमें अभिनय कर रहे हैं। उनके पिताजी सेना में थे और देश के लिए शहीद हो गए थे। ईशान खट्टर यानी ब्रिगेडियर बलराम मेहता को पिप्पा की जांच के लिए चुनौतीपूर्ण रूप से दिया जाता है, लेकिन उन्होंने अपने आदेशों का उल्लंघन करके टैंक को गहराई में ले जाने का निर्णय लिया है, जिससे उसे सीमा पर नहीं भेजा जाता है, बल्कि उसे एक डेस्क पर बैठा दिया जाता है। उसका परिवार इसे अस्वीकार करता है, जबकि उसका बड़ा भाई सीमा पर जा रहा है।
बहन को कोडिंग आती है तो वो भी सेना से जुड़ जाती है, लेकिन फिर बलराम ने अपनी क्षमता साबित की। उस टैंक में, जिसमें आमतौर पर तीन लोग बैठते हैं, वहां उन्नति करते हुए चार लोगों के लिए बैठने की जगह बना दी गई। इस प्रदर्शन से आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ ने उसे जंग के लिए चुना। जंग हुई और हम सभी जानते हैं कि कैसा हुआ, लेकिन इस कहानी को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, वह बहुत शानदार है।
यह एक शानदार फिल्म है जो पहले सीन से ही आपको प्रभावित करती है। फिल्म का नाम यह कहता है कि कोई भी फिल्म टैंक के नाम पर कैसे हो सकती है, लेकिन यही फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें न केवल पिप्पा टैंक की शक्ति दिखाई गई है, बल्कि सेना के योद्धाओं की बहादुरी दिखाई गई है, और यह फिल्म रिश्तों की एक ऐसी कहानी को भी दिखाती है जो दिल को छू जाती है। पिप्पा जब दुश्मन की बजाता है, तो आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और आपको लगता है कि यह गदर बड़े पर्दे पर मचना चाहिए था।
ईशान खट्टर ने अपने किरदार को एक शानदार तरीके से निभाया है। एक युवा सैनिक, जिसे लगता है कि उसने न तो अपने परिवार के लिए कुछ किया है, न ही अपनी सेना के लिए। वह कैसे दो मोर्चों पर लड़ता है, इस जंग को ईशान ने उदाहरणीय रूप से निभाया है। उसके लिए उसकी प्रशंसा होनी चाहिए।
युद्ध के सीन्स में ईशान ने रौंगटे खड़े कर दिए हैं और भावनात्मक सीन्स में भी उनकी आंखें नम होती हैं। मृणाल ठाकुर का किरदार भी उत्कृष्ट है और एक बार फिर मृणाल ने शानदार अभिनय किया है। ईशान के बड़े भाई के रोल में प्रियांशु पेन्यूली का काम भी शानदार है। उन्होंने अपने किरदार में बहुत अच्छी छवि बनाई है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है।
कुल मिलाकर, यह फिल्म देखने योग्य है और इसे जरूर देखा जाना चाहिए। क्योंकि यह दिखाती है कि अच्छा सिनेमा कैसे बनाया जा सकता है। इसके लिए बस बनाने का जुनून और इच्छा होनी चाहिए।