उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू

राष्ट्रपति ने यूसीसी विधेयक पर लगाई मुहर
सीएम धामी ने गौरवपूर्ण क्षण बताया
देहरादून। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू हो गयी है। कुछ समय पूर्व ही प्रदेश की विधानसभा से यूसीसी बिल पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति की 11 मार्च को मिली मंजूरी के बाद विधायी एवं संसदीय विभाग ने मंगलवार को इस सम्बंध में अधिसूचना जारी कर दी।
सीएम धामी ने कहा हम सभी प्रदेशवासियों के लिए यह अत्यंत हर्ष और गौरव का क्षण है कि हमारी सरकार द्वारा उत्तराखण्ड विधानसभा में पारित समान नागरिक संहिता विधेयक को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने अपनी मंजूरी प्रदान की है।उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर प्रदेश में समान नागरिक संहिता कानून लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलने के साथ ही महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न पर भी लगाम लगेगी।
प्रदेश में सामाजिक समानता की सार्थकता को सिद्ध करते हुए समरसता को बढ़ावा देने में युनिफार्म सिविल कोड अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सीएम धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुरूप हमारी सरकार नागरिकों के हितों के संरक्षण और उत्तराखण्ड के मूल स्वरुप को बनाए रखने के लिए संकल्पित है।
उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार किए जाने को लेकर गठित पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने 2 फरवरी को फाइनल ड्राफ्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दिया था। ऐसे में अब शनिवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान धामी कैबिनेट में इस पर मुहर लगाने के साथ ही 6 फरवरी को विधानसभा सत्र के पटल पर विधेयक रखा था।

नियमावली बनते ही लागू करने वाला पहला राज्य होगा उत्तराखण्ड
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के लागू होने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। अगर रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया तो उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं दिया जाएगा।
पति और पत्नी के जीवित रहते दूसरे विवाह पूरी तरह के प्रतिबंध रहेगा।
इसके अलावा अगर शादीशुदा दंपति में से कोई एक बिना दूसरे की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उससे तलाक लेने और गुजारा भत्ते लेने का पूरा अधिकार होगा।
सभी धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र युवकों के लिए 21 साल और युवतियों के लिए 18 साल निर्धारित की गई है।
पति और पत्नी के बीच तलाक या घरेलू झगड़े के दौरान पांच साल तक के बच्चे की कस्टडी उसकी मां के पास ही रहेगी।
वहीं सभी धर्मों में पति और पत्नी को तलाक लेने के समान अधिकार दिए गए हैं।
मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक रहेगी।
सभी धर्मों और समुदायों में बेटी को संपत्ति में समान अधिकार दिया जाएगा।
संपत्ति के अधिकार के लिए जायज और नायायज बच्चे में कोई भेद नहीं होगा।
नाजायज बच्चों को भी उस दंपति की जैविक संतान में गिना जाएगा।
किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी संपत्ति में पत्नी और बच्चों को समान अधिकार दिया जाएगा।
पत्नी और बच्चों के साथ माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार होगा।
वहीं, किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को संपत्ति में अधिकारी संरक्षित किया गया है।
रजिस्ट्रेशन के बाद कपल की सूचना रजिस्ट्रार उनके माता-पिता या अभिभावक को देगा।
इसके अलावा लिव इन रिलेशन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस कपल का जायज बच्चा ठहराया जाएगा।
उस बच्चे को जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।

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