जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तारीख करीब आ रही है, वैसे-वैसे कांग्रेस और सपा के बीच के रिश्ते तलख हो रहे हैं. कांग्रेस ने यूपी में सपा के वोटबैंक को जीतने का निशाना बनाया है, और उसके लिए समर्थन बढ़ा रही है. सपा के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व सांसद रवि प्रकाश वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी वर्मा की कांग्रेस में शामिल होने की घड़ी आ गई है. कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं जैसे इमरान मसूद, हमीद अहमद, और फिरोज आफताब को भी अपने साथ ले लिया है. अब कांग्रेस की यह कदम सपा के एक महत्वपूर्ण चुनौतीपूर्ण चुनौती हो सकता है.
रवि प्रकाश वर्मा, जो सपा के संस्थापक सदस्यों में थे, ने अपने संघर्षक साथियों के साथ सामाजिक न्याय और विकास के मुद्दों पर काम किया है, और उनका लखीमपुर खीरी के आसपास के क्षेत्र में मजबूत प्रभाव बना है. रवि प्रकाश वर्मा ने अब समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दिया है, और 6 नवंबर को उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के साथ जुड़ने का ऐलान किया है. यह घड़ी यूपी की सियासी महसूसात में बड़ा उलटफेर ला सकती है और आने वाले चुनाव में दिग्गज नेताओं के साथ कांग्रेस की मजबूती को बढ़ा सकती है.
2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के दौरान सपा के लिए रवि वर्मा का कांग्रेस में शामिल होना एक महत्वपूर्ण कदम है, और इससे सपा को एक बड़ा झटका लगा है. पूर्व सांसद रवि वर्मा सपा के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं और वे पार्टी के गठन के समय से जुड़े हुए हैं. रवि वर्मा ने 1998 से 2004 तक लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से तीन बार सपा के टिकट पर सांसद के रूप में कार्य किया, और एक बार राज्यसभा सदस्य भी रहे. रवि वर्मा के पिता बाल गोविंद वर्मा और माता ऊषा वर्मा भी लखीमपुर खीरी सीट से सांसद रहे हैं, जिससे यह सीट उनके परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
रवि प्रकाश वर्मा के परिवार ने लखीमपुर खीरी संसदीय सीट पर दस बार प्रतिनिधित्व किया है, और इस सीट का उनके लिए विशेष महत्व है. इनकी बेटी पूर्वी वर्मा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से उम्मीदवारी की थी, लेकिन वह बीजेपी के अजय मिश्रा टेनी से हार गई थी. रवि प्रकाश वर्मा खुद कुर्मी समुदाय से हैं और वे रुहेलखंड के प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं. उनकी कांग्रेस में शामिल होने से सपा के वोटबैंक पर भी असर पड़ सकता है. रवि प्रकाश वर्मा के समर्थन से बरेली, शाहजहांपुर, धौरहरा, सीतापुर, पीलीभीत, और मिश्रिख जैसी संसदीय सीटों पर सियासी दलों के समीकरण में बदलाव हो सकता है. इन इलाकों में सपा के लिए 2024 के चुनाव में एक नया मायना हो सकता है.
लोकसभा चुनाव के मद्दनेजर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने स्थानीय समर्थन को मजबूत करने के लिए कई रणनीतियों पर काम कर रही है. इस उद्देश्य के लिए कांग्रेस ने कुर्मी समुदाय को आकर्षित करने के लिए पूर्व सांसद रवि वर्मा और उनकी बेटी को शामिल किया है. रवि प्रकाश के बाद कई अन्य कुर्मी नेताओं को भी कांग्रेस में शामिल करने की योजना बनाई गई है, और इसके लिए अवध और देवीपाटन क्षेत्र के कई महत्वपूर्ण नेताओं से वार्ता की जा रही है.
रवि प्रकाश वर्मा वहाँ के एक प्रमुख रुहेलखंड के नेता हैं और वह इस क्षेत्र के कुर्मी समुदाय के वोटों के बड़े निर्णायक हैं। कांग्रेस में उनके शामिल होने से न केवल लखीमपुर खीरी क्षेत्र में बल्कि उनके आसपास के लोकसभा सीटों पर भी कुर्मी वोटबैंक पर असर हो सकता है। रवि वर्मा के पिता और मां कांग्रेस में रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपना सियासी सफर सपा के साथ शुरू किया था, और अब वे वापस कांग्रेस में जा रहे हैं। इससे कांग्रेस के और सपा के रिश्तों में भी तल्ख हो सकता है।
कांग्रेस का ध्यान सपा के वोटबैंक पर है, और हाल ही में पश्चिमी यूपी के मुस्लिम नेताओं को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें सपा से निकाले गए इमरान मसूद, हमीद अहमद, और सपा के पूर्व उम्मीदवार फिरोज आफताब शामिल हैं। कांग्रेस यह समझ चुकी है कि यूपी में अगर वह फिर से मजबूती से उम्मीदवारी करनी है, तो उसे अपने परंपरागत सियासी आधार को दोबारा से प्राप्त करना होगा। यूपी में सपा ने कभी-कभी कांग्रेस की साथिता की है, और इस बार भी कांग्रेस अपने परंपरागत समर्थन को बढ़ावा देने के लिए कई पुराने नेताओं की शामिल कर रही है, जैसे कि इमरान मसूद और हमीद अहमद, और अब रवि प्रकाश वर्मा, इससे कांग्रेस के संबंध और सपा के साथ भी और भी तल्ख हो सकते हैं।
वर्तमान में, सपा के नेता अखिलेश यादव यूपी में पीडीए (पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के साथ आगे बढ़कर बीजेपी को हराने का दावा कर रहे हैं. इस फॉर्मूले के माध्यम से, सपा यूपी के 80 सीटों में से 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, और केवल 15 सीटें अपने सहयोगी दल के लिए छोड़ रही है.
यूपी में, विपक्षी गठबंधन INDIA में सपा, कांग्रेस, आरएलडी, और अपना दल (कमेरावादी) के साथ है. सपा जो पीडीए फॉर्मूले के साथ यूपी के 80% सीटों पर खुद चुनाव लड़ने की बात कर रही है, इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस और आरएलडी जैसे दल भी अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने में लग गए हैं.