यात्रा में शामिल नहीं होती हैं महिलाएं
रुद्रप्रयाग। प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां हरियाली देवी की डोली सूरज की पहली किरण के साथ कांठा मंदिर पहुंचने पर सैकड़ों भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा, जिसके बाद पुजारी ने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना व हवन कर भोग लगाया। इस दौरान भक्तों ने भंडारे को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। इसके बाद मां हरियाली की डोली वापस ससुराल जसोली मंदिर के लिए रवाना हुई।
हर साल धनतेरस पर शुरू होने वाली सिद्धपीठ हरियाली देवी की मायके जाने की पैदल यात्रा सदियों से चली आ रही है। शुक्रवार 10 नवंबर देर शाम को जसोली स्थित हरियाली देवी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना करने के उपरान्त मंदिर के गर्भगृह से हरियाली देवी की भोगमूर्ति को बाहर निकालकर डोली में सजाया गया। इसके बाद शाम करीब सात बजे मां हरियाली की डोली गाजे बाजों के साथ मायके कांठा मंदिर के लिए रवाना हुई।
इस दौरान भक्तों के जयकारों के साथ क्षेत्र का पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। लगभग आठ किमी लंबी यात्रा के दौरान मां हरियाली देवी की डोली ने अपने पहले पड़ाव बांसों में विश्राम किया। कुछ समय यहां पर ठहरने के बाद फिर से डोली अपने मायके लिए चल पड़ी।मां हरियाली देवी ने पंचरंग्या स्थान पर स्नान किया। जैसे ही मां की डोली कांठा मंदिर के समीप पहुंची, वैसे ही मायके पक्ष के लोग डोली की अगुवाई करने पहुंचे। शनिवार सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ ही डोली कांठा मंदिर पहुंची जिसे मां हरियाली का मायका माना जाता है।
इसके उपरान्त डोली ने मंदिर की एक परिक्रमा करने के बाद मंदिर के पुजारी ने मां की भव्य पूजा-अर्चना कर गाय के दूध की खीर का भोग लगाया। पुजारी ने यहां पर जौ-तिल व घी की आहुतियों से हवन भी किया। पूड़ी व हलवा बनाकर भक्तों ने इसको प्रसाद के रूप में ग्रहण किया।
यात्रा में जाने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व से ही तामसिक भोजन का त्याग करना पड़ता है। एक सप्ताह पूर्व से भोजन में प्याज, लहसुन, मीट, अंडा समेत कई तामसिक खाद्य पदार्थों को त्याग करने वाला व्यक्ति ही इस यात्रा में शामिल होता है। इस यात्रा में महिलाओं के जाने को प्रतिबंधित माना गया है। कुछ पल कांठा में विश्राम करने के बाद हरियाली देवी अपने ससुराल जसोली के लिए वापस लौटी आई।