ओलंपिक खेलों में भाग लेना ही बहुत बड़ी बात है। तब तो पदक जीतने वाला खिलाड़ी विशेष ही होता है। भारत में जहां अभी खेल सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है, वहां पर खिलाड़ी को अपने खेल जीवन के शुरुआती दौर में विभिन्न कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। बात जब खेलों में बहुत पिछड़े राज्य हिमाचल से हो और ऐसे में कोई विश्व स्तर पर जाकर ओलंपिक में पदक जीतता है, तो उस महामानव को सलाम करना बनता ही है। ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन है। चार वर्षों बाद आयोजित होने वाले महाकुंभ का नजारा ही अलग होता है। अब समर ओलंपिक खत्म होने के बाद पैरा एथलीटों के लिए भी ओलंपिक खेल आयोजित हो रहे हैं। आजकल पेरिस में पैरा ओलंपिक चल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के उपमंडल अंब के बडुआं गांव के निषाद कुमार ने ऊंची कूद की टी-47 स्पर्धा में देश के लिए ओलंपिक में दूसरी बार 2.04 मीटर ऊंची कुदान लगा कर रजत पदक जीता है। इससे पहले इसी स्पर्धा में निषाद टोक्यो ओलंपिक 2021 में देश के लिए रजत पदक जीत चुका है। 3 अक्टूबर 1999 को पिता रछपाल सिंह व माता पुष्पा देवी के घर जन्मे निषाद कुमार का छह वर्ष की आयु में घास काटने की मशीन से उसका दायां बाजू कट जाने के बाद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि आगे भविष्य में यह बालक दो ओलंपिक में लगातार पदक जीतेगा।
माता पुष्पा देवी, जो अपने समय की वॉलीबाल खिलाड़ी व चक्का प्रक्षेपक रही थी, उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने बेटे का भविष्य खेल में तलाशा। निषाद ने गांव के विद्यालय में पढ़ते समय ही ऊंची कूद में लंबी उड़ान की सोच ली थी। पूरे हिमाचल का अपनी स्पर्धा में चैंपियन बनने के बाद जब देखा हिमाचल में ऊंची कूद के लिए न तो आधारभूत सुविधा थी और न ही प्रशिक्षक। ऐसे में प्रदेश से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। पहाड़ की संतानों को अभी तक न तो सही परिचय ही मिलता है और न ही प्रश्रय। पलायन में शहर दर शहर भटकना पड़ता है। पहले पंचकूला और फिर किसी की सलाह पर बंगलौर का रुख किया और वहां पैरा एथलेटिक्स महासंघ के सचिव सत्यनारायण की देखरेख में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया और फिर ओलंपिक के पदक को चूमा। निषाद ने 2013 में पटियाला में आयोजित स्कूल नेशनल में रजत पदक जीत कर भविष्य के विजेता होने का संकेत तो दे दिया, मगर पैरा नेशनल में पदक के लिए 2017 पंचकूला आयोजन का इंतजार करना पड़ा। इस नेशनल में निषाद ने 1.83 मीटर कूद कर पहला रजत पदक जीता था। 2019 दुबई में आयोजित विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ऊंची कूद की टी-47 स्पर्धा में रजत पदक जीतकर टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। 2021 दुबई में हुई विश्व पैरा ग्रांप्री में स्वर्ण पदक जीता था। टोक्यो ओलंपिक में निषाद ने भारत के लिए टी-47 स्पर्धा में रजत पदक जीत कर हिमाचल से पहला पैरा ओलंपिक पदक विजेता बन गया। डीएवी चंडीगढ़ व जालंधर की लवली यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई करने वाले इस हाई जंपर ने 2023 पेरिस व 2024 कोवे में आयोजित पैरा एथलेटिक्स विश्व चैंपियनशिप में देश के लिए पदक जीते हैं। 2022 एशिया पैरा खेल, जो चीन के शहर हांगजों में हुए थे, उसमें भी टी-47 स्पर्धा में 2.06 मीटर ऊंचा कूद कर देश के लिए रजत पदक जीता है।
निषाद कुमार का एथलेटिक्स सफर हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत है। जहां अभी तक अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य पढ़ाई में देखते हैं, निषाद के माता-पिता ने उसका भविष्य खेल, वह भी ऊंची कूद में देखा, जिस स्पर्धा में हिमाचल प्रदेश का कोई इतिहास ही नहीं था। यह अलग बात है कि निषाद ने तो अब स्वर्णिम इतिहास रच दिया है जिस पर हिमाचल ही नहीं, अपितु पूरा देश गर्व कर सकता है। हिमाचल सरकार को भी चाहिए कि वह निषाद कुमार को सम्मानजनक नौकरी व घोषित नगद ईनाम जल्द से जल्द देकर खिलाड़ी का सम्मान करे। जहां तक देश में खेल ढांचे का प्रश्न है, भारत को अभी खेलों के लिए पर्याप्त सुविधाएं जुटानी हैं। हिमाचल में आधारभूत खेल ढांचा तो उपलब्ध है, पर उसके विस्तार की जरूरत है। खेल ढांचे के लिहाज से हरियाणा को हिमाचल से काफी आगे समझा जाता है। अगर हिमाचल में भी हरियाणा की तरह की खेल सुविधाएं खिलाडिय़ों को मिल जाएं, तो यहां की प्रतिभाएं भी कमाल दिखा सकती हैं। हिमाचल में प्रदेश सरकार को पर्याप्त संख्या में खेल प्रशिक्षक भी नियुक्त करने हैं। उच्च कोटि के खिलाड़ी बिना प्रशिक्षकों के ईजाद नहीं किए जा सकते। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह पूर्व खिलाडिय़ों को अनुबंध के आधार पर पांच-पांच साल के लिए नियुक्त करे। अगर उनका प्रदर्शन अच्छा रहता है, तो इस अनुबंध को आगे भी बढ़ाया जा सकता है। जरूरत इस बात की भी है कि हिमाचल में जो खेल मैदान उपलब्ध हैं, उनका ठीक ढंग से रखरखाव हो और ऐसे मैदानों का प्रयोग मात्र खेल गतिविधियों के लिए ही हो। हिमाचल में कुछ खेल मैदानों का प्रयोग फिलहाल सैर-सपाटे के लिए भी किया जा रहा है, ऐसी गतिविधियां बंद की जानी चाहिए और उपलब्ध खेल ढांचे का पर्याप्त रखरखाव तथा सदुपयोग होना चाहिए। जो खेल प्रशिक्षक अपने स्तर पर प्रशिक्षण गतिविधियां चला रहे हैं, उनको प्रोत्साहित करने के लिए भी प्रदेश सरकार को कुछ करना चाहिए। पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों को पुरस्कार और सरकारी नौकरी का आबंटन भी जल्द हो।