देहरादून में फर्जी रजिस्ट्री के मास्टरमाइंड की सहारनपुर जिला कारागार में संदिग्ध हालत में मौत।

देहरादून के किस्से और घटनाओं में एक फर्जी रजिस्ट्री घोटाले के पीछे केपी सिंह की बड़ी कहानी छुपी हुई थी। इस घोटाले में केपी सिंह ने धन की भारी कमाई की, लेकिन फिर वह पैसों की लालच में अपनी ही कब्र खोदता चला गया।

देहरादून में फर्जी रजिस्ट्री मेँ ज़्यादातर उसका नाम जुड़ा हुआ है । उन्होंने 500 करोड़ रुपए से अधिक की जमीनों को बेच डाला था और उनकी रजिस्ट्री को अपने नाम पर करवाने के चक्कर में अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार बैठा।

लेकिन फर्जी रजिस्ट्रीयों की परत के खुलने के बाद, केपी सिंह का मास्टर माइंड का पर्दा उठ गया और उन्हें एसआईटी द्वारा गिरफ्तार किया गया। सहारनपुर जिला कारागार में उनकी संदिग्ध हालतों में मौत हो गई, जिसके साथ ही कई अहम राज भी दफ्न हो गए।

केपी सिंह, एक चालाक फ्रॉड था जिसने देहरादून के भू-दस्तावेज के कई दशकों से शहर के सहारनपुर कलेक्ट्रेट में रखे जाने वाले दस्तावेजों का बेहद चालाकी से इस्तेमाल किया। रिकॉर्ड रूम में, केपी ने माहिरता से दून की मूल्यवान ज़मीनों के दस्तावेजों को परिवर्तित किया, या उन्हें गायब कर दिया, या फिर नकली रजिस्ट्री रिकॉर्ड में जगह बना दी। उन्होंने इस धंधे में अधिक से अधिक 500 करोड़ रुपए की ज़मीनें बेच डाली।

केपी के पास अब भी कई ऐसी गोपनीय जानकारियां थीं जिनका किसी को भी पता नहीं था। सूत्र दर्ज करते हैं कि कई लोग अब भी उसके गुप्त राजों से जुड़े हुए हैं, और उनकी मौत के बाद जांच कई लोगों को प्रभावित कर सकती है, जिससे कई गोपनीय रहस्य उजागर हो सकते हैं।

केपी सिंह अपनी चालाकी के साथ एक धन बनाने के लिए जाने जाते था। उसने एक जमीन के दो या तीन फर्जी दस्तावेज तैयार करता और फिर यदि किसी वारिस ने इस पर आपत्ति दर्ज की, तो वे कहते कि पिछले कई दशकों में यह जमीन उनके पूर्वजों के द्वारा उन्हें दान में दी गई थी। इस तरीके से, असली वारिस उलझ जाते और केपी सिंह उन ज़मीनों के सौदे को कर लेता था।

राजस्व विभाग के अनुसार, केपी सिंह ने फर्जी कागजों के सहारे लगभग 30 से 50 प्लाट, खाली जगहें, चाय बागान, कॉफी बागान, और विरासती भवनों को बेच डाला। यह ज़मीनों को फर्जी तरीके से बेचने के लिए, वह पूरी मेहनत और तल्लीनता से करता था। वो हमेशा देहरादून के पुराने व्यक्तियों की खोज करता, जिनमें जमीदार, नंबरदार, और धन्नासेठ शामिल होते थे।

जिनके वारिस विदेशों मेँ शिफ्ट थे वो ज़्यादातर ऐसे लोगों को निशाना बनाता था, यहां तक कि वे बची हुई जमीन को चाय बागान या कॉफी बागान में तब्दील कर देते थे। या फिर ऐसी जिन जमीनों में, कई सालों तक कोई गतिविधि नहीं होती थी वो ऐसी ज़मीनों को भी निशाना बनाता था।

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