5 जून, 2015 को गुरुग्राम के सेक्टर 57 में रेलवे विहार के पास एक छात्र की सड़क दुर्घटना में जान चली गई थी. अमित चौधरी नाम का वह छात्र अपने चाचा के साथ अपने घर की ओर जा रहा था. तभी एक अनजान वाहन ने उन्हें तेज रफ्तार से ठोका था. उसके पिता जितेंद्र चौधरी ने 8 साल बाद उस वाहन को ढूंढ निकाला जिसने उनके बेटे को मार डाला था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल पहुंचते पहुंचते ही अमित की सांसें रुक गई थी. वहीं दोषी वाहन चालक ने मौके पर ही भाग लिया था. उसी दिन सेक्टर 56 के पुलिस थाने में इस मामले का पंजीकरण कराया गया था, लेकिन चालक का पता नहीं चल पाया और केस को समाप्त कर दिया गया. इसके बाद अमित के पिता ने पुलिस स्टेशन के कई दौरे किए, लेकिन न्याय नहीं मिल सका.
उन्होंने फिर अपने बेटे को इंसाफ दिलाने का ठाना. दुर्घटना के स्थान से उन्हें एक टूटा हुआ साइड मिरर और एक धातु का टुकड़ा मिला जिसने इस पूरे मामले का रुख ही बदल दिया. उन्हें एक मैकेनिक ने ये बताया कि साइड मिरर मारुति सुजुकी स्विफ्ट वीडीआई की है. जितेंद्र चौधरी ने मारुति कंपनी से संपर्क करके मदद मांगी. वे कार के शीशे पर छपे नंबर से कार के मालिक का पंजीकरण नंबर पता करने में सफल हुए.
उन्होंने ये भी बताया कि उन्होंने उस साल के अंत तक कार के पुर्जे जांच अधिकारी को दे दिए. लेकिन फिर भी जांच में कोई तरक्की नहीं हुई. इसके बाद वे उदास होकर जनवरी 2016 में कोर्ट गए. उन्होंने कोर्ट में अपनी याचिका लगाई. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMIC) आकृति वर्मा की कोर्ट ने जांच अधिकारी से स्थिति रिपोर्ट मांगी. पुलिस ने अप्रैल में कोर्ट में एक रिपोर्ट देते हुए कहा कि आरोपी का पता लगाना असंभव है. कोर्ट ने 27 जुलाई को पुलिस की रिपोर्ट को मान लिया.
उन्होंने फिर अप्रैल 2018 में फिर से अदालत में जाकर याचिका दायर की. लेकिन इस याचिका को तीन महीने बाद ही रद्द कर दिया गया, कोर्ट ने कहा कि याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अदालत के पहले के आदेश की पुनरावलोकन के समान होगा. हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जितेंद्र सिंह मामले की फिर से जांच के लिए पुलिस स्टेशन के SHO को बुला सकते हैं. चौधरी ने जनवरी 2023 में फिर से अदालत में अपनी याचिका लगाई इस बार उन्होंने उस कार के मालिक पर मुकदमा चलाने की मांग की जिसने उनके बेटे को मारा और भाग गया था.
मामले और पुलिस रिपोर्ट की जांच करने के बाद JMIC विक्रांत ने यह निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता को बिना नोटिस दिए ‘अनट्रेस’ रिपोर्ट को मान लेना अवैध था. कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य की जांच एजेंसी, पुलिस प्रशासन में एक नागरिक का भरोसा नहीं रखता है तो अदालत अपने कर्तव्य को निभाने में असफल होगी. कोर्ट ने पुलिस को मामले की फिर से जांच करने के लिए कहा.
उन्होंने निर्देश के बाद भी जांच में कोई तरक्की नहीं हुई और पुलिस ने अगस्त में एक उत्तर देते हुए कहा कि जांच अधिकारी उपलब्ध नहीं था क्योंकि वह उत्तराखंड चला गया था. कोर्ट ने इस पर पुलिस को डांटा और इस केस से जुड़े पुलिस अधिकारियों पर विभागीय जांच का आदेश दिया. पुलिस ने अंत में पिछले हफ्ते वाहन के मालिक ज्ञान चंद पर आरोप पत्र दायर किया. एक अधिकारी ने कहा कि हम अदालत के आदेशों को मानेंगे. चौधरी ने कहा कि बेकार की जांच और गलतियों के बाद, मुझे आशा है कि मेरे बेटे को मारने वाला व्यक्ति शीघ्र ही पकड़ा जाएगा और जल्द ही उसे न्याय के सामने खड़ा किया जाएगा.