मुलायम सिंह यादव, समाजवाद के प्रतीक, की प्रथम पुण्यतिथि आज मनाई जा रही है। उनके पैतृक गांव सैफई में श्रद्धांजलि दी जाएगी, जहां सपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत कई प्रमुख पार्टी नेता उपस्थित होंगे।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पहली पुण्यतिथि पर उनके पैतृक निवास सैफई में आज श्रद्धांजलि दी जाऐगी. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ सहित सपा व अन्य पार्टी के नेताओं ने किया नेता जी को याद
इसके साथ ही, मैनपुरी से भी बड़ी संख्या में लोग सैफई के दर्शन करने जा रहे हैं। मैनपुरी ने लोकतंत्र के मंदिर का महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने यहीं से लोकसभा चुनाव लड़कर भाजपा के खिलाफ जीत हासिल की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में, सैफई परिवार ने लोकसभा चुनाव में सबसे ताकतवर कुनबों के रूप में उभरकर दिखाई दी थी, जब मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से जीत हासिल की थी।
मैनपुरी और आजमगढ़ से जीतकर आए उपराज्यपति मुलायम सिंह यादव के बच्चे ने भी उनकी पदयात्रा को जारी रखा है। फिरोजाबाद से उपभोक्ता अक्षय यादव, बदायूं से उपभोक्ता धर्मेंद्र यादव, कन्नौज से सांसद डिंपल यादव – इन सभी नेताओं ने समाजवादी पार्टी के प्रति अपना समर्थन दिखाया है।
मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट छोड़ दी है, लेकिन वहां के लोगों की उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी का परिवार वहीं से जारी रहेगा। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी और आजमगढ़ से सीट जीतकर दिखाया कि वे बड़े चुनावों में भी मजबूत हैं।
इसके साथ ही, मुलायम के निधन के बाद सपा की नेता डिंपल यादव ने मैनपुरी की उपचुनाव में भी जीत हासिल की है, जिससे स्पष्ट होता है कि यादव परिवार का सामर्थ्य और लोकप्रियता मैनपुरी में अभी भी मजबूत है।
2022 के विधानसभा चुनाव में, जब भाजपा ने सीएम पद के उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ को प्रस्तावित किया, तो समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी चुनाव लड़ने का एलान किया और मैनपुरी सीट को चुना। अखिलेश यादव ने पिता की कर्मभूमि मैनपुरी की सीट पर कमाल की जीत हासिल की है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट करते हुए लिखा पूर्व रक्षामंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पुण्यतिथि पर उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि
मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था वह एक किसान परिवार के थे मुलायम सिंह यादव शुरुआत के दिनो से छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. उन्होने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल करने के पश्चात एक इंटर कालेज में कुछ सालो तक पढ़ाया भी.वह वर्ष 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गए.उन्होने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का कड़ा विरोंध भी किया.
मुलायम सिंह यादव जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर रहे राजनीतिक सम्भावनाओं को हमेशा खोल कर रखने वाले हर अवसर को इस्तेमाल करने वाले जमीनी नेता थे
दशकों तक राजनीतिक दांवपेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुए. कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए. मेदांता अस्पताल में उन्होने 10 अक्टूबर को आखरी सांस ली समर्थकों के बीच नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह करीब छह दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे. इस यात्रा में उन्होंने ख्याति पाई तो इस यात्रा के दौरान असफलता भी हाथ लगी. लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता पर असर नहीं हुआ.
राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया. वह 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद भी चुने गए. एक समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा गया था. वह दशकों तक राष्ट्रीय नेता रहे लेकिन उत्तर प्रदेश ही ज्यादातर उनका राजनीतिक अखाड़ा रहा. समाजवाद के प्रेरित राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सियासी सफर शुरू करने वाले उन्होंने उत्तर प्रदेश में ही अपनी राजनीति निखारी और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद भी मुलायम सिंह यादव पार्टी समर्थकों के लिए नेताजी बने रहे और मंच पर उनकी मौजूदगी समाजवादी कुनबे को जोड़े रखने की उम्मीद बंधाती थी.
जब सपा नेता को बुलाया गया ‘मुल्ला मुलायम’
वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी और देश-प्रदेश की राजनीति इस मुद्दे पर केंद्रित हो गई. अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया और उग्र कारसेवकों से बाबरी मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई. इस घटना के बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बीजेपी और अन्य हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए और उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा गया.
धुर-विरोधी बसपा के समर्थन में बनाई सरकार
नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव बसपा के समर्थन से एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बाद में समर्थन वापस होने से उनकी सरकार गिर गई. उसके बाद यादव ने राष्ट्रीय राजनीति का रुख किया और 1996 में मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते. विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस का गैर भाजपाई विकल्प तैयार करने की कोशिशों के दौरान मुलायम कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी नजर आए. हालांकि, वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए. रूस के साथ सुखोई लड़ाकू विमान का सौदा भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख किया और वर्ष 2003 में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा की सरकार बनने पर वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे.
अंतिम क्षण तक परिवार को एकजुट करने में लगे रहे मुलायम
वर्ष 2016 में यादव परिवार में बिखराव शुरू हो गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई और 1 जनवरी 2017 को पार्टी के आपात राष्ट्रीय अधिवेशन में मुलायम सिंह के स्थान पर उनके बेटे अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया. हालांकि मुलायम सिंह को पार्टी का संरक्षक बनाया गया. पार्टी में वाजिब ‘सम्मान’ नहीं मिलने पर शिवपाल ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपना अलग दल बना लिया. मुलायम इस दौरान अपने कुनबे को एकजुट करने की भरपूर कोशिश करते रहे लेकिन इस बार उन्हें लगभग मायूसी ही हाथ लगी.
सफल राजनीतिक सफर के धनी और गरीब कमजोर पिछडो किसान की आवाज के मुख्य व दमदार चेहरा रहे धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव को नम आंखो से कर रहे है याद….